history of India in Hindi, Download pdf; Available current affairs, (यूनानी का 5 लेखक)
भारत का प्राचीन इतिहास
history of India in Hindi,भारतीय समाज एवं संस्कृति आज जिस स्थिति में है, उनके संदर्भ में भारत के अतीत का अध्ययन विशेष महत्व रखता है, क्योकि वर्त्तमान भारत की जड़े अतीत से जुड़ी हुई है | अतीत में हुआ विकास ही क्रमिक रूप से चलता हुआ
आज के युग तक आ पहुँचा है | ऐसी स्थिति में अपने अतीत को ठीक से समझना आवश्यक है | इतिहास जानने के लिए स्रोतों की जरुरत पड़ती है जिनके माध्यम से अतीत के बारे में जाना जा सकता है |
प्राचीन भारत के इतिहास के अध्ययन से हम यह पता लगा सकेंगे कि वर्त्तमान स्थिति की जड़े कहाँ है ?
इससे हम यह भी जान सकेंगे कि भारतीय समाज एवं संस्कृतियों का विकास कब, कहाँ और कैसे हुआ था?history of India in Hindi
history of India in Hindi, भारत का इतिहास; राजाओं द्वारा रचित साहित्य
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
– धर्म ग्रंथ
– विदेशियों द्वारा विवरण
– ऐतिहासिक ग्रंथ
– पुरातात्विक स्रोतों
धार्मिक ग्रंथ स्त्रोत :-
– ब्राहमण साहित्य :- ऋग्वेद, सामवेद ,यजुर्वेद,अर्थववेद, ब्राहमण,आरण्यक,उपनिषद्, महाभारत, रामायण,पुराण |
– बौद्ध साहित्य : विनयपिटक, सुतपिटक, अभिधम्मपिटक, महावंश,दीपवंश, ललित विस्तार, दिव्यावदान, बुधचरित, (अस्वघोष) महाविभाष (वसुमित्र), जातक आदि |
– जैन ग्रंथ : कल्पसूत्र, भगवती सूत्र, आचरांग, सूत्र आदि |
ऐतिहासिक साहित्य स्रोत
– राजतरंगिनी (कल्हण), पृथ्वीराज रासो (चन्द्रबरदाई), अर्थशास्त्र (कौटिल्य), अभिज्ञानशाकुन्तलम (कालिदास), स्वप्न्वासवदता (भास)
राजाओं द्वारा रचित साहित्य
– हाल (सातवाहन) :- गाथा सप्तशती
– महेन्द्रवर्मन (पल्लव) :- मतविलास प्रहसन
– हर्षवर्धन :- रत्नावली, नागानन्द
प्रियदर्शिका
history of India in Hindi, भारत का इतिहास; राजाओं द्वारा रचित साहित्य
साहित्यिक स्रोत ग्रंथ : प्रमुख तथ्य
– राजतरंगिनी जो संस्कृत भाषा में है, पहली बार ऐतिहासिकता की झलक इसी ग्रंथ में मिलती है
– महावंश व दीपवंश बौद्धग्रंथ, दक्षिणी बौद्ध मत के ग्रंथ है |
– ललित विस्तार (बौद्धग्रंथ ) की रचना नेपाल में हुई थी |
– पाणिनी ने पहले संस्कृत व्याकरण अष्टाध्यायी की रचना की थी | इसमें मौर्यकाल के सामाजिक जीवन का वृतान्त मिलता है |
– पतंजलि ने महाभाष्य की रचना की, जो कि पाणिनी की अष्टाध्यायी पर आधारित है |
– ऐतिहासिक महत्व के प्रथम ग्रंथ की रचना हर्ष के दरबारी कवि बाणभट्ट ने हर्षचरित के रूप में की |
– अर्थशास्त्र जो कौटिल्य (चाणक्य/विष्णुगुप्त) ने लिखी, मौर्यकालीन राजव्यवस्था का चित्रण करती है |
विदेशियों द्वारा विवरण
यूनानी लेखक:-
– हेरोडोटस : हेरोडोटस को इतिहास का पिता कहा जाता है | इन्होने हिस्टोरिका नामक पुस्तक की रचना की |
– मेगास्थनीज : मेगास्थनीज, सैल्यूकस के राजदूत के चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहा तथा इण्डिका की रचना की | यह मूल रूप में अप्राप्य है, लेकिन इसके उद्धरण अनेक प्रख्यात लेखकों की रचनाओं में आए हैं |
– अज्ञात लेखक : एक अज्ञात यूनानी लेखक ने ईसवी सन की पहली सदी में भारतीय बंदरगाहों प्राकृतिक स्थिति व व्यापार पर प्रकाश अपनी रचना –पेरिप्लस ऑफ़ द एरिथ्रियन सी (लाल सागर का विवरण) में दिया है |
– टोलेमी : टोलेमी की ज्योग्राफी (150 ई. के आस पास) प्राचीन भारतीय भूगोल एवं वाणिज्य की जानकारी देती है |
– स्ट्रेबो : स्ट्रेबो ने मेगास्थनीज के विवरण को काल्पनिक माना है |
रोमन लेखक
1.प्लिनी : प्लिनी की नेचुरलिस हिस्टोरिका भारत और इटली के बीच होने वाले व्यापारिक संबंधो की जानकारी देती है |
चीनी विवरण
– चीनी पर्यटक, भारत में बौद्ध धर्म के अध्ययन तथा बौद्ध तीर्थो का दर्शन करने आते थे |
– फाह्यान : यह चन्द्रगुप्त द्वितीय (गुप्तशासक) के शासन काल में भारत आया (पाँचवी सदी के प्रारंभ में) | उसने फू-को-की (fu-ko-ki) की रचना की जिसमे गुप्त काल में भारत के सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक स्थिति पर प्रकाश डाला |
– ह्वेन सांग (युवान च्वांग) : यह हर्षवर्धन के समय 629 ई. में भारत आया और सी-यू-की (si-yu-ki) की रचना की | वाटर्स के अनुसार वह भारत को इन-टू (अर्द्धचन्द्राकार) नाम देता है | ह्वेन सांग के मित्र व्ही-ली ने ह्वेन सांग की जीवनी लिखी थी | इसने हर्षकालीन राजनीती के साथ-साथ धर्म, रीति-रिवाज एवं समाज का वर्णन किया है | इसमें 138 देशो का विवरण मिलता है |
– इत्सिंग : यह सातवीं शताब्दी में भारत आया तथा नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालयों का वर्णन किया |
history of India in Hindi, भारत का इतिहास; राजाओं द्वारा रचित साहित्य
अरबी लेखक
– सुलेमान : वह 9व़ी शताब्दी में भारत आया तथा पाल एवं प्रतिहार शासकों के बारे में लिखा |
– अलबरूनी : अलबरूनी (महमूद गजनवी का समकालीन) ने तहकीक-ए-हिन्द (किताब-उल-हिन्द) की रचना की, जिसमे भारत के निवासियों की दशा का वर्णन किया है |
पुरातात्विक स्रोत
– पुरातात्विक स्त्रोतों में अभिलेख, सिक्के (मुहर),स्मारक,मूर्तियाँ,चित्रकला,भौतिक, अवशेष,मृदभांड, आभूषण आदि आते है |
शब्दावली
– अभिलेख :- जो लेख मुहर, प्रस्तरस्तंभों स्तूपों, चट्टानों और ताम्रपत्रों पर मिलते हैं उन्हें अभिलेख कहते हैं
– एपिग्राफी : अभिलेख के अध्ययन को पुरालेखशास्त्र (एपिग्राफी) कहते हैं |
– पेलिअग्राफी : अभिलेख तथा दुसरे प्राचीन दस्तावेजों की प्राचीन तिथि के अध्ययन को पुरालिपिशास्त्र (पेलिअग्राफी) कहते हैं |
– न्युमिस्मेटिक्स : सिक्को के अध्ययन को मुद्राशास्त्र (न्युमिस्मेटिक्स) कहते हैं |
सिक्के
– भारत के प्राचीन सिक्के पंचमार्क (Punchmark) या आहात सिक्के कहलाते थे | साहित्य में इन सिक्को को कार्षापण कहा गया हैं |
– पुराने सिक्के तांबे, चांदी, सोने और सीसे के बनते थे |
– आरंभिक सिक्कों में कुछ प्रतीक मिलते थे, पर बाद में सिक्कों पर राजाओं और देवताओ के नाम तथा तिथियाँ उल्लिखित मिलती थी |
– सोने के लिखित सिक्के सर्वप्रथम कुषाण राजाओ ने जारी किये थे |
– गुप्त शासकों ने सबसे अधिक सोने के सिक्के जारी किए |
– समुद्रगुप्त को एक सिक्के पर वीणा बजाते हुए दिखाया गया है |
– सातवाहनो ने सीसे (lead) के सिक्के जारी किए |
– गुप्त काल में स्वर्ण सिक्कों को ‘दीनार’ एवं चांदी के सिक्कों को रूपक कहते थे |
अभिलेख :
– अभिलेख मुहरों, प्रस्तरस्तंभों, चट्टानों और तामपत्रो पर मिलते है, तथा मंदिर की दीवारों और ईंटो या मूर्तियों पर भी मिलते हैं |
– सबसे अधिक अभिलेख मैसूर संग्रहालय में संगृहीत हैं |
– मौर्य, मौर्योतर और गुप्त काल के अधिकांश अभिलेख कार्पस इन्सक्रिप्श्न्म इन्डिकेरम नामक ग्रंथ में संकलित हैं |
अभिलेखों में प्रयुक्त लिपियाँ
– प्राकृत लिपि : आरंभिक अभिलेख प्राकृत भाषा में है |
– ब्राह्मी लिपि : अशोक के शिलालेख ब्राह्मी लिपि में हैं | यह लिपि बाएं से दाएं लिखी जाती थी |
– खरोष्ठी लिपि : अशोक के कुछ शिलालेख खरोष्ठी लिपि में है जो दाएं से बाएँ लिखी जाती थी |
– यूनानी एवं आरामाइक लिपि : पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में अशोक के शिलालेखों में इन लिपियों का प्रयोग हुआ है |